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तमाम  सफ़हे किताबों के फड़फड़ाने  लगे

हवा धकेल के दरवाज़ा आ गई  घर  में

 

 कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!

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बातें बोसकीयाना

यशवंत व्यास ने गुलज़ार से बात की

 

और  

पवन झा ने उस बात पर बात बना  दी

मेरे पास नब्बे के वसंत की एक दोपहर है।

 उस दोपहर ने इस  सुबह की हथेली पर  सूरज मला था।  वे तब भी बरसों  पुरानी पहचान के निकले, हालाँकि अपॉइंटमेंट पहला था।  
बोसकीयाना  कोई तीन दहाई  लम्बी मुलाक़ात से बीने हुए कुछ लम्हों  का दो सौ  पेजी तर्ज़ुमा  है।  इसकी अढ़ाई दिन की शक़्ल  में गुलज़ार का मक़नातीसी  जादू खुलता है... शायरी, फिल्म, ज़िन्दगी और वक़्त का जुगनू रोशन होता है।  

ऐसा कि  जैसे गुलज़ार में नहा कर निकले

Series released in PRINT on 29/30 May 2021 

 

Gulzar
   In Conversation 

कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जिनके पैर छुओ ,और घुटने भी , तो पीठ पर हाथ ज़िन्दगी भर महसूस होता है।  
जो जानते हैं , वो जानते हैं कि गिरह से ज़्यादा रमाने  वाली गिरह  की तलाश होती है। ..इसी तलाश का एक नाम है बोसकीयाना -जहां  लम्हा भी मिला और दास्ताँ  भी।

 

It has been a three decade long rendezvous of soaking through the effervescence of Gulzar Saheb - the poet, philosopher, filmmaker and charismatic soul. Distilled into bonds of magical quests sought in memories of songs, stars and cadance. Boskiyana brings together his philosophy of life where the story finds solace in the arms of the moment.

BOSKIYANA ... Gulzar in Conversation with Yashwant Vyas is created by Yashwant Vyas and Published by Rajkamal Prakashan Samuh.  Available with Amazon and Flipkart.

About

Creators

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YASHWANT  VYAS 

AUTHOR

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PAVAN JHA

HOST

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Boskiyana       Episode

मेरे पास नब्बे के वसंत की एक दोपहर है।

 उस दोपहर ने इस  सुबह की हथेली पर  सूरज मला था।  वे तब भी बरसों  पुरानी पहचान के निकले, हालाँकि अपॉइंटमेंट पहला था।  
बोसकीयाना  कोई तीन दहाई  लम्बी मुलाक़ात से बीने हुए कुछ लम्हों  का दो सौ  पेजी तर्ज़ुमा  है।  इसकी अढ़ाई दिन की शक़्ल  में गुलज़ार का मक़नातीसी  जादू खुलता है... शायरी, फिल्म, ज़िन्दगी और वक़्त का जुगनू रोशन होता है।  

ऐसा कि  जैसे गुलज़ार में नहा कर निकले

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